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Sunday, February 25, 2018

There is no place like Badrinath, neither in the past nor in the future

''बदरी सद्रश्यां भूतो. न भविष्यति''

पृथ्वी पर साक्षात् भू वैकुंठ मने जाने वाले, और ना सिर्फ मानव ही बल्कि देवता भी जिनकी अर्चना वन्दना के लिए लालाहित रहते है, ऐसे श्री हरी भगवान बदरी बिशाल के कपाट ब्रह्म मुहूर्त पर ४ बज कर १५ पर खुलेंगे, शीतकाल मै ६ महीने तक कपाट बंद रहते है, मान्यता है की इस अवधि मै देवता गण भगवान के दर्शन बंदन करते हैं| और देव ऋषि भगवान बदरी बिशाल के प्रधान पुजारी के रूप मैं होते हैं|  कपाट खुलने पर मानव श्री हरी के दर्शन, बंदन और अर्चन करते हैं| और दक्षिण बारात के केरल प्रान्त के नम्बुरी ब्राहमण भगवान के प्रधान पुजारी के रूप मै श्री बदरी बिशाल की पूजा अर्चना करते हैं| इन्हें रावल जी महाराज के नाम से जाना जाता है|  भगवान के स्नान, श्रींगार स्पर्श का अधिकार मात्र रावल जी को होती हैं|
बद्रीनाथ मैं भगवान विष्णु की पूजा होती है| तथा यह मन्दिर आदि गुरु शंकराचार्य जी ने  ९ विं शताब्दी मै बनवाया है, एसी मान्यता हैं| भगवान बद्रीनाथ जी का यह मन्दिर अलकनन्दा नदी के किनारे उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले मैं है|  लोक कथा है की यह स्थान पहले बागबान शिव भूमि के नाम से व्यवस्थित था| भगवान विष्णु अपने ध्यान करने के लिए एक स्थान खोज रहे थे, अलकनन्दा नदी के किनारे उन्हें यह स्थान भा गया, और वे यहाँ पर बल रूप मैं अवतरित हिये|  और क्रंदन करने लगे, उनका रुदन सुन कर माता पार्वती हृदय द्रवित हो उठा| माता पार्वती और भगवान शिव उस बालक के समीप उपस्थित हो ऊठे| माता ने उस बालक ले पुछा की बालक तुम्हें क्या चाहिए, तो भगवान विष्णु ने उनसे वह स्थान मांग लिया| और भगवान शिव ने उन्हें पहचान लिया और वह स्थान भगवान विष्णु को दे दिया|
बद्रीनाथ मैं तप्त कुंड है| भगवान के दर्शन करने से पूर्व तप्त कुंड मै स्नान किया जाता हैं|  अपने जीवन काल मै एक बार बद्रीनाथ अवश्य जाना चाहिए| बद्रीनाथ रमणीक स्थान हैं|
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