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Monday, February 26, 2018

pollution damage

प्रदुषण हमारे समाज को हर तरह से दूषित कर रहा है| प्रदुषण मुख्य रूप से निम्न प्रकार के होते है|
१- वायू प्रदुषण- वायु प्रदुषण मुख्य तौर से अत्यधिक वाहनों से निकलने वाली जहरीली गैस से होता है| दुनिया मैं दुनिया की आबादी के बराबर ही वाहन हो गये है| दूसरी और फेक्टरी से निकलने वाले जहरीली गैस से प्राणियों को साँस लेना कठिन होता जा रहा है| जिसका समय से उपचार करना आवश्यक है|
२-ध्वनि प्रदुषण- बाजारों मैं गाडियों के हॉर्न और माइक स्पीकर की ध्वनि कानों के परदे फाड़ने को आतुर हुई है|  जिसका उपचार किया जाना आवश्यक है| गाड़ियों मैं लॉ कम तीव्रता के हॉर्न का प्रयोग किया जाय| 
३- जल प्रदुषण - आधुनिक समाज मैं सबसे बड़ा खतरा जल का ही है| फेक्ट्रीयों से निकला अवसिस्ट पदार्थ या सीवर लाइन का सारा पदार्थ नदियों मैं  डालने से नदियों का जल दुसित हो रहा है| आप देख सकते हैं, दिल्ली मैं यमुना मया जी का हाल| जिसका निदान किया जाना आवश्यक है|
४- भूमि प्रदुषण- भूमि प्रदुषण कचरे के फेलने और रासायनिक रिसाव के कारण भूमि खराब हो रही है| अत्यधिक रासायनिक उर्बरक और दवाओं के छिडकाव के कारण भी भूमि ख़राब हो रही है| जिससे भूमि का बचाव किया जाना आवश्यक है| यदि एसा नही किया गया तो भविष्य मैं आने वाली पीडी के द्वारा भूमि मैं एक अन्न का दाना नही उगाया जा सकेगा|
5-परमाणु हतियार- सबसे बड़ा दुर्भाग्य है, परमाणु हतियारों का अविष्कार, जिससे एक और कई मौतें एक साथ हो जाती है | वहीँ दूसरी और उससे होने वाले प्रदुषण महा बिनास कारी परिणाम निकल रहे है| उदहारण हिरासमा और नागासाकी है|
प्रदुषण समाज मैं एक भयानक बीमारी है| यदि इससे बचाव का उपाय अभी नही किया तो कहीं देर न हो जाय| इसका एक मात्र उपाई है| वृक्षों का रोपण करना | सरकार को चाहिए की audinace पास करे की प्रत्येक व्यक्ति एक वर्ष मैं ३ नये पौधे लगाएगा| और उनकी देख-रेख भी करे| तभी हमारे समाज से प्रदुषण का नाश हो सकता है|


Sunday, February 25, 2018

Discovery of Forest

Discovery of Forest in villege devkhal of Himalayn Range हिमालय पर्वत श्रृंखला में गांव देवखाल के वन की खोज


हिमालय पर्वत श्रृंखला में गांव देवखाल के वन की खोज

52 is the Fort in Garhwal

गढ़वाल गढ़ों की गढ़देश

गढवाल शाब्दिक अर्थ है गढ़वाला। पहले यहां 52 गढ़ हुआ करते थेइसलिए इसे बावन गढ़ों का देश "गढ़देश" (छोटे छोटे किलों का देश) कहा जाता था। असल में तब गढ़वाल में 52 राजाओं का आधिपत्य था। उनके अलग अलग राज्य थे और वे स्वतंत्र थे। इन 52 गढ़ों के अलावा भी कुछ छोटे छोटे गढ़ थे जो सरदार या थोकदारों (तत्कालीन पदवी) के अधीन थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इनमें से कुछ का जिक्र किया था। ह्वेनसांग छठी शताब्दी में भारत में आया था। इन राजाओं के बीच आपस में लड़ाई में चलती रहती थी। माना जाता है कि नौवीं शताब्दी लगभग 250वर्षों तक इन गढ़ों की स्थिति बनी रही लेकिन बाद में इनके बीच आपसी लड़ाई का पवांर वंश के राजाओं ने लाभ उठाया और 15वीं सदी तक इन गढ़ों के राजा परास्त होकर पवांर वंश के अधीन हो गये। इसके लिये पवांर वंश के राजा अजयपाल सिंह जिम्मेदार थे जिन्होंने तमाम राजाओं को परास्त करके गढ़वाल का नक्शा एक कर दिया था। 

गढ़वाल में वैसे आज भी इन गढ़ों का शान से जिक्र होता और संबंधित क्षेत्र के लोगों को उस गढ़ से जोड़ा जाता है। मैं बचपन से इन गढ़ों के आधार पर लोगों की पहचान सुनता आ रहा हूं। गढ़वाल के 52 गढ़ों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है ... 
पहला ... नागपुर गढ़ : यह जौनपुर परगना में था। यहां नागदेवता का मंदिर है। यहां का अंतिम राजा भजनसिंह हुआ था। 
दूसरा ... कोल्ली गढ़ : यह बछवाण बिष्ट जाति के लोगों का गढ़ था। 
तीसरा ... रवाणगढ़ : यह बद्रीनाथ के मार्ग में पड़ता है और रवाणीजाति का होने के कारण इसका नाम रवाणगढ़ पड़ा। 
चौथा ... फल्याण गढ़ : यह फल्दकोट में था और फल्याण जाति के ब्राहमणों का गढ़ था। कहा जाता है कि यह गढ़ पहले किसी राजपूत जाति का था। उस जाति के शमशेर सिंह नामक व्यक्ति ने इसे ब्राह्मणों का दान कर दिया था। 
पांचवां ... वागर गढ़ : यह नागवंशी राणा जाति का गढ़ था। इतिहास के पन्नों पर झांकने पर पता चलता है कि एक बार घिरवाण खसिया जाति ने भी इस पर अधिकार जमाया था। 
छठा ... कुईली गढ़ : यह सजवाण जाति का गढ़ था जिसे जौरासी गढ़ भी कहते हैं। 
सातवां ... भरपूर गढ़ : यह भी सजवाण जाति का गढ़ था। यहां का अंतिम थोकदार यानि गढ़ का प्रमुख गोविंद सिंह सजवाण था। 
आठवां ... कुजणी गढ़ : सजवाण जाति से जुड़ा एक और गढ़ जहां का आखिरी थोकदार सुल्तान सिंह था। 
नौवां ... सिलगढ़ : यह भी सजवाण जाति का गढ़ था जिसका अंतिम राजा सवलसिंह था। 
दसवां ... मुंगरा गढ़ : रवाई स्थित यह गढ़ रावत जाति का था और यहां रौतेले रहते थे। 
11वां ... रैका गढ़ : यह रमोला जाति का गढ़ था। 

12वां ... मोल्या गढ़ : रमोली स्थित यह गढ़ भी रमोला जाति का था। 

13वां ... उपुगढ़ : उद्येपुर स्थित यह गढ़ चौहान जाति का था। 

14वां ... नालागढ़ : देहरादून जिले में था जिसे बाद में नालागढ़ी के नाम से जाना जाने लगा। 

15वां ... सांकरीगढ़ : रवाईं स्थित यह गढ़ राणा जाति का था। 

16वां ... रामी गढ़ : इसका संबंध शिमला से था और यह भी रावत जाति का गढ़ था। 

17वां ... बिराल्टा गढ़ : रावत जाति के इस गढ़ का अंतिम थोकदार भूपसिंह था। यह जौनपुर में था। 

18वां ... चांदपुर गढ़ : सूर्यवंशी राजा भानुप्रताप का यह गढ़ तैली चांदपुर में था। इस गढ़ को सबसे पहले पवांर वंश के राजा कनकपाल ने अपने अधिकार क्षेत्र में लिया था। 

19वां ... चौंडा गढ़ : चौंडाल जाति का यह गढ़ शीली चांदपुर में था। 

20वां ... तोप गढ़ : यह तोपाल जाति का था। इस वंश के तुलसिंह ने तोप बनायी थी और इसलिए इसे तोप गढ़ कहा जाने लगा था। तोपाल जाति का नाम भी इसी कारण पड़ा था। 

21वां ... राणी गढ़ : खासी जाति का यह गढ़ राणीगढ़ पट्टी में पड़ता था। इसकी स्थापना एक रानी ने की थी और इसलिए इसे राणी गढ़ कहा जाने लगा था। 

22वां ... श्रीगुरूगढ़ : सलाण स्थित यह गढ़ पडियार जाति का था। इन्हें अब परिहार कहा जाता है जो राजस्थान की प्रमुख जाति है। यहां का अंतिम राजा विनोद सिंह था। 

23वां ... बधाणगढ़ : बधाणी जाति का यह गढ़ पिंडर नदी के ऊपर स्थित था। 

24वां ... लोहबागढ़ : पहाड़ में नेगी सुनने में एक जाति लगती है लेकिन इसके कई रूप हैं। ऐसे ही लोहबाल नेगी जाति का संबंध लोहबागढ़ से था। इस गढ़ के दिलेवर सिंह और प्रमोद सिंह के बारे में कहा जाता था कि वे वीर और साहसी थे। 

25वां ... दशोलीगढ़ : दशोली स्थित इस गढ़ को मानवर नामक राजा ने प्रसिद्धि दिलायी थी। 

26वां ... कंडारागढ़ : कंडारी जाति का यह गढ़ उस समय के नागपुर परगने में थे। इस गढ़ का अंतिम राजा नरवीर सिंह था। वह पंवार राजा से पराजित हो गया था और हार के गम में मंदाकिनी नदी में डूब गया था। 

27वां ... धौनागढ़ : इडवालस्यू पट्टी में धौन्याल जाति का गढ़ था। 

28वां ... रतनगढ़ : कुंजणी में धमादा जाति का था। कुंजणी ब्रहमपुरी के ऊपर है। 

29वां ... एरासूगढ़ : यह गढ़ श्रीनगर के ऊपर था। 

30वां ... इडिया गढ़ : इडिया जाति का यह गढ़ रवाई बड़कोट में था। रूपचंद नाम के एक सरदार ने इस गढ़ को तहस नहस कर दिया था। 

31वां ... लंगूरगढ़ : लंगूरपट्टी स्थिति इस गढ़ में भैरों का प्रसिद्ध मंदिर है। 

32वां ... बाग गढ़ : नेगी जाति के बारे में पहले लिखा था। यह बागूणी नेगी जाति का गढ़ था जो गंगा सलाण में स्थित था। इस नेगी जाति को बागणी भी कहा जाता था। 

33वां ... गढ़कोट गढ़ : मल्ला ढांगू स्थित यह गढ़ बगड़वाल बिष्ट जाति का था। नेगी की तरह बिष्ट जाति के भी अलग अलग स्थानों के कारण भिन्न रूप हैं। 

34वां ... गड़तांग गढ़ : भोटिया जाति का यह गढ़ टकनौर में था लेकिन यह किस वंश का था इसकी जानकारी नहीं मिल पायी थी। 

35वां ... वनगढ़ गढ़ : अलकनंदा के दक्षिण में स्थित बनगढ़ में स्थित था यह गढ़। 

36वां ... भरदार गढ़ : यह वनगढ़ के करीब स्थित था। 

37वां ... चौंदकोट गढ़ : पौड़ी जिले के प्रसिद्ध गढ़ों में एक। यहां के लोगों को उनकी बुद्धिमत्ता और चतुराई के लिये जाना जाता था। चौंदकोट गढ़ के अवशेष चौबट्टाखाल के ऊपर पहाड़ी पर अब भी दिख जाएंगे। 

38वां ... नयाल गढ़ : कटुलस्यूं स्थित यह गढ़ नयाल जाति था जिसका अंतिम सरदार का नाम भग्गु था। 

39वां ... अजमीर गढ़ : यह पयाल जाति का था। 

40वां ... कांडा गढ़ : रावतस्यूं में था। रावत जाति का था। 

41वां ... सावलीगढ़ : यह सबली खाटली में था। 

42वां ... बदलपुर गढ़ : पौड़ी जिले के बदलपुर में था। 

43वां ... संगेलागढ़ : संगेला बिष्ट जाति का यह गढ़ यह नैल चामी में था। 

44वां ... गुजड़ूगढ़ : यह गुजड़ू परगने में था। 

45वां ... जौंटगढ़ : यह जौनपुर परगना में था। 

46वां ... देवलगढ़ : यह देवलगढ़ परगने में था। इसे देवलराजा ने बनाया था। 

47वां ... लोदगढ़ : यह लोदीजाति का था। 

48वां ... जौंलपुर गढ़ 

49वां ... चम्पा गढ़ 

50वां ... डोडराकांरा गढ़ 

51वां ... भुवना गढ़ 

52वां ... लोदन गढ......


There is no place like Badrinath, neither in the past nor in the future

''बदरी सद्रश्यां भूतो. न भविष्यति''

पृथ्वी पर साक्षात् भू वैकुंठ मने जाने वाले, और ना सिर्फ मानव ही बल्कि देवता भी जिनकी अर्चना वन्दना के लिए लालाहित रहते है, ऐसे श्री हरी भगवान बदरी बिशाल के कपाट ब्रह्म मुहूर्त पर ४ बज कर १५ पर खुलेंगे, शीतकाल मै ६ महीने तक कपाट बंद रहते है, मान्यता है की इस अवधि मै देवता गण भगवान के दर्शन बंदन करते हैं| और देव ऋषि भगवान बदरी बिशाल के प्रधान पुजारी के रूप मैं होते हैं|  कपाट खुलने पर मानव श्री हरी के दर्शन, बंदन और अर्चन करते हैं| और दक्षिण बारात के केरल प्रान्त के नम्बुरी ब्राहमण भगवान के प्रधान पुजारी के रूप मै श्री बदरी बिशाल की पूजा अर्चना करते हैं| इन्हें रावल जी महाराज के नाम से जाना जाता है|  भगवान के स्नान, श्रींगार स्पर्श का अधिकार मात्र रावल जी को होती हैं|
बद्रीनाथ मैं भगवान विष्णु की पूजा होती है| तथा यह मन्दिर आदि गुरु शंकराचार्य जी ने  ९ विं शताब्दी मै बनवाया है, एसी मान्यता हैं| भगवान बद्रीनाथ जी का यह मन्दिर अलकनन्दा नदी के किनारे उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले मैं है|  लोक कथा है की यह स्थान पहले बागबान शिव भूमि के नाम से व्यवस्थित था| भगवान विष्णु अपने ध्यान करने के लिए एक स्थान खोज रहे थे, अलकनन्दा नदी के किनारे उन्हें यह स्थान भा गया, और वे यहाँ पर बल रूप मैं अवतरित हिये|  और क्रंदन करने लगे, उनका रुदन सुन कर माता पार्वती हृदय द्रवित हो उठा| माता पार्वती और भगवान शिव उस बालक के समीप उपस्थित हो ऊठे| माता ने उस बालक ले पुछा की बालक तुम्हें क्या चाहिए, तो भगवान विष्णु ने उनसे वह स्थान मांग लिया| और भगवान शिव ने उन्हें पहचान लिया और वह स्थान भगवान विष्णु को दे दिया|
बद्रीनाथ मैं तप्त कुंड है| भगवान के दर्शन करने से पूर्व तप्त कुंड मै स्नान किया जाता हैं|  अपने जीवन काल मै एक बार बद्रीनाथ अवश्य जाना चाहिए| बद्रीनाथ रमणीक स्थान हैं|
Image result for image of badrinath temple

Indian numbers

भारतीय गणना Indian numbers

१० दस ten
१०० सौ Hundered
१००० एक हजार Thousands
१०००० दस हजार Ten Thousands
१००००० एक लाख Lakh
१०००००० दस लाख Ten Lakh
१००००००० एक करोड़ Crore
१०००००००० दस करोड़ Ten Crore
१००००००००० एक अरब arab (billion)
१०००००००००० दस अरब Ten Arab
१००००००००००० खरब Trillion
१०००००००००००० दस खरब\Ten Trillion
१००००००००००००० नील Nile
१०००००००००००००० दस  नील Ten Nile
१००००००००००००००० पदम् Padam
१०००००००००००००००० महा पदम् Maha Padam 
१००००००००००००००००० शंख ConCh
१०००००००००००००००००० महा शंख Maha Conch
१००००००००००००००००००० अंत्या Antya
१०००००००००००००००००००० महा अंत्या Maha Antya
१००००००००००००००००००००० मध्य  Madhya
१०००००००००००००००००००००० महा मध्य Maha Madhya
१००००००००००००००००००००००० पारध pardh
१०००००००००००००००००००००००० महा पारध Maha Pardh
१००००००००००००००००००००००००० धून Dhoon
१०००००००००००००००००००००००००० महा धून Maha Dhoon
१००००००००००००००००००००००००००० अशोहिनी Ashohini
१०००००००००००००००००००००००००००० महा अशोहिनी Maha Ashohini

There is special significance in disst. Chamoli tourist and spirituality

जनपद चमोली का पर्यटन और अध्यात्म मैं विशेष स्थान है। जहां एक और भारत के चार धाम मैं से एक बद्री धाम है। जहाँ पर आदि गुरु शंकराचार्य जी ने बद्रीनाथ मैं भगवान विष्णु जी की मूर्ति स्थापित की है, वहीं जोशीमठ मैं ज्योतिर्मठ की स्थापना कर धर्म और आस्ता को नया आयाम दिया है। जनपद चमोली मैं पर्यटन की दृष्टि से औली, जोशीमठ, गोपेश्वर, सतोपंत, फूलों की घाटी, हेमकुण्ड साहिब, रामणी, वाण, नंदा देवी यात्रा मार्ग और गौचर मेला आदि अनेकों स्थान और धार्मिक स्थानों के कारण जनपद चमोली का पर्यटन और अध्यात्म मैं विशेष स्थान और महत्व है।



In the shadow of future disasters

भविष्य आपदाओं के साये मैं

आपदा

आपदा एक प्राकृतिक या मानव निर्मित जोखिम का प्रभाव है जो समाज और प्रयार्वरण को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है  आपदा एक असामान्य घटना है जो थोड़े ही समय के लिए आती है और अपने विनाश  के चिन्ह लम्बे समय के लिए छोड़ जाती है| मनुष्य का भविष्य आपदाओं से घिरा हुआ हैतथा मानव भविष्य आपदा के सायें मैं जीने को विवस है|भविष्य मैं निम्न प्रकार के आपदा आने की संभावनाएं प्रकट हो रही है|
- अत्यधिक जनसँख्या:- बर्तमान समय मैं दुनिया की जनसंख्याँ बहुताहित तेजी से बड रही है| जिसमें की एशियाई देशों का बड़ा योगदान दिख रहा है| अधिक जनसँख्या के बड़ने पर क्षेत्रफल घनत्व भी बड़ेगा| 
परमाणु युद्ध :- वर्तमान समय में  ताकत का सूचक है परमाणु हतियार, किन्तु  यदि कभी भी परमाणु युद्ध  हुआ तो आप समझ सकते हैं  क्या  हसल  होगा दुनिया का?
३- ग्लोबल वार्मिंग :-  पर्यावरण के बदले शुर से कोई भी अनजाना नही है  जिससे हमारे पर्यावरण पर  निम्न  प्रकार से खतरा मंडरा रहा है|
अ- अतिवर्षा- ग्लोबल वार्मिंग के कारण कभी कम वर्षा तो कभी अति वर्षा हो सकती है| पानी बिना हमारा  जीवन संभव ही नहीं हैं|
ब- ओलावृष्टी- ओलावृष्टी होने से हमारी सारी फसल ख़राब हो जाएगी, जो की बिलकुल भी सही नहीं है|
स- सूखा:- ग्लोबल वार्मिंग से सूखा पड़ने के आसार तो अभी से दिख रहे हैयदि सूखा पड़ा तो पानी नहीं होगा| फसल नहीं उग पायेगी तो खायेंगे क्या|
द- लू :- ग्लोबल वार्मिंग के  कारण भविष्य मै लू (मौसम मैं अधिकाधिक गर्मी का बढना ) से भी बड़ा दुष्प्रभाव पड़ेगा|
य- अनुपयोगी गैस :- ग्लोबल वार्मिंग के कारण वातावरण मै बहुत से अनुपयोगी गैसों का प्रभाव पड़ेगा, जो की खतरनाक होगा|
व- हिम युग :- ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम मैं हो रहे बदलाव से भविष्य मै हिम युग आने की असंका हैं|
  जो की बिलकुल उचित नहीं होगा|
र- जल संकट :- ग्लोबल वार्मिंग से हमारी दुनिया मैं जल संकट का खतरा मंडरा रहा है | बहुत से बेज्ञानिकों का मानना है की अगला विश्व युद्ध पानी के लिए हो सकता है|
४- सभ्यता की समाप्ति :- यदि दुनिया मैं कोई भी सभ्यता नही होगी तो मानव मूल्यों का ह्रास होगाऔर सभ्यता के पुनः निर्माण या नयीं सभ्यता बनाने पर बहुत समय व्यर्थ होगा| तथा प्रत्येक शब्द की नई परीभाषा बनानी होगी|
५- सुनामी और भूकम्प :- भविष्य मैं सुनामी और भूकम्प आटा हैं तो उसके परिणाम शुभ  नहीं होंगे|
६- आतंकबाद :- दुनिया मैं सबसे बड़ी समस्या हैं आतंकबाद का, यदि इस विषय के बारे मै अभी नही कुछ किया गया तो भविष्य मैं इसके शुकद परिणाम नही दिख रहे|
निष्कर्ष :- आपदा चाहे कोई भी हो उसका परिणाम शुभ नहीं होता है| किन्तु इससे बचाव किया जाना नित्यांत आवश्यक हैग्लोबल वार्मिंग से बचने का सबसे आसन तरीका यही है की ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण किया जाय| इस सम्बन्ध मै हमारी सरकारों को भी ठोस कदम उठाने होंगेजैसे की हिंदुस्तान के प्रत्येक व्यक्ति को प्रति वर्ष २ पेड़ लगाने होंगेतथा उन पेड़ों की देख-रेख करनी होगी| तथा पानी के श्रोतों के पास उतीस के पेड़ रोपित करने होंगे जिससे श्रोते का पानी सूख न जाय| उतीस जमीन से पानी को बहुत सोकता है| तथा जिंतना पेड़ को चाहिए उतना की पानी प्रयोग कर शेष पानी छोड़ देता हैं|



History of Indian Rupees

History of Indian Rupees भारतीय रुपये का इतिहास Ancient indian currency

Ancient indian currency
History of Indian Rupees
भारतीय रुपये का इतिहास

*  फूटी कौड़ी          से        कौड़ी
*  कौड़ी                 से         दमड़ी
*  दमड़ी                से         धेला
*  धेला                   से         पाई
*  पाई                   से         पैंसा
*  पैंसा                  से          आना
*  आना                से           रुपया बना

{ २५६ दमड़ी = १९२ पाई = १२८ धेला = ६४ पैंसा (पुराना) =१६ आना = १ रुपया }

१)  ३ फूटी कोड़ी       =      १ कौड़ी
२)  १० कौड़ी             =      १ दमड़ी
३)  २ दमड़ी             =       १ धेला
४)  १.५ पाई             =        १ धेला
५)  ३ पाई                =         १ पैंसा (पुराना)
६)  ४ पैंसे                =          १ आना
७)  १६  आना          =          १ रुपया 




Alaknanda River life effect

अलकनंदा नदी गंगा की सहयोगी नदी है, जो, की गंगा के चार नामों में से एक है| अलकनंदा नदी का उद्गम स्थान सतोपंथ हिमनंद है|  अलकनंदा सतोपंथ से निकल कर बद्रीनाथ के किनारे से होते हुए २२९ किमी० की दुरी तय करती है| अलकनंदा नदी गढ़वाल हिमालय की प्रमुख नदी हैअलकनंदा नदी की औसत गहराई ७ फुट है| अलकनंदा अपने मै कई नदियों और गदेरों से संगम करती हुए बढती जाती है| अलकनंदा नदी पर कई नदियों का संगम और प्रयाग हैजिनमें से प्रमुख पांच प्रयाग हैं|.                               १- विष्णो प्रयाग-जोशीमठ से १० किमि० पीछे अलकनंदा नदी धोली नदी का सगम है] जो की विष्णो प्रयाग के नाम से जाना जाता है|
२- नन्दप्रयाग-नन्दप्रयाग मैं अलकनंदा नदी से नंदाकिनी नदी मिलती है| जिसे नन्द प्रयाग नाम से जाना जाता है|
३- कर्णप्रयाग| कर्णप्रयाग मैं अलकनंदा नदी पिंडर नदी से मिलती है] जो की कर्णप्रयाग नाम से जाना जाता हैं| 
 ४- रुद्रप्रयाग- रुद्रप्रयाग मै अलकनंदा नदी मै मन्दाकिनी का संगम होता है तब उसे रुद्रप्रयाग कहा जाता है|
५- देवप्रयाग-देवप्रयाग मैं अलकनंदा से भागीरथी मिलती है] तब उसे देवप्रयाग कहा जाता है|
     देवप्रयाग से आगे अलकनंदा को गंगा के नाम से जाना जाता है| जो की मोक्षदायिनी है| जिसका आकार विशाल है|










समा है सुहाना सुहाना, नशे में जहां है

  समा है सुहाना सुहाना, नशे में जहां है किसीको किसीकी खबर ही कहाँ है हर दिल में देखो मोहब्बत जवां है कह रही है नजर, नजर से अफसाने हो रहा है ...