गोपेश्वर सीमांत जनपद चमोली की राजधानी है, गोपेश्वर नगर मैं भगवान शिव ने तपस्या की थी| जहाँ पर उनका एक भव्या मन्दिर है, जो गोपीनाथ मन्दिर के नाम से प्रसिद है| जो की प्राचीनतम है, मन्दिर के आगन मैं एक ५ मीटर ऊँचा त्रिशूल है, जो की बारवी शताब्दी का है, और अस्टधातू का बना है| इस सम्बन्ध मैं एक दन्तकथा ये है, कि भगवान शिव ने कामदेव को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका तो वह यहाँ गढ़ गया| त्रिशूल की धातु अभी तक सही स्थिति मैं है, जिस पर मौसम प्रभावहीन है| यह माना जाता है, कि शारीरिक बल से इस त्रिशूल को हिलाया भी नही जा सकता है| जबकि यदि कोई भक्त इसे छू भी ले तो इसमें कम्पन होने लगती है|
गोपेश्वर से पंचकेदारों मैं एक तुंगनाथ को जाने वाला मार्ग केदारनाथ जाने वाले रस्ते पर चोपता से उपर को पड़ता है| चोपता से तुंगनाथ ३ किमी पैदल की दूरी पर स्थित है| जो की बड़ा की मनभावक ओर रमणीक स्थान है| वहाँ जाने के बाद वहां से बापस आने का बिलकुल मन नही होता है| तुंगनाथ की पूजा तुंगनाथ मैं ६ माह और बाकि के ६ माह शीतकाल मैं मक्कूमठ (मक्कू ग्राम) मैं होती है| माना जाता है, कि तुंगनाथ जी का ये मन्दिर १००० वर्ष पुराना है, जिसे की पाण्ड्वो ने भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु बनाया था|
रुद्रनाथ गोपेश्वर से ५ किमी० की दूरी पर सगर नामक ग्राम है, जहाँ से रुद्रनाथ २१ किमी० पैदल यात्रा है| जो कि पंचकेदारों मैं से एक है| सगर से १० किमी० की दूरी पर पनार बुग्याल है| जहाँ से उपर बृक्ष नहीं होते हैं| मखमली घास के मैदान यकायक सरे दृष्य को परिवर्तित कर देते है| अलग-अलग किस्म की घास, जड़ी-बूटी, ओर फूलों से यात्री मोहपाश मैं बंधते चले जाते हैं| यात्रियों के ऊपर जाते ही प्रकृति का खुला रूप देखते हो बनता है| रुद्रनाथ से नन्दादेवी, कामेट, त्रिशूल, नंदाघुटी शिखरों का नजारा बड़ा ही मनभावक होता है| रुद्रनाथ मैं ब्रहमकमल बहुतायत मैं खिलते हैं| रुद्रनाथ मैं केवल भगवान शिव के मुख की पूजा होती है| पूजा मात्र ६ मास के लिए होती है| शीतकाल के ६ मास की पूजा गोपेश्वर के गोपीनाथ मन्दिर मैं होती है|
No comments:
Post a Comment