सातवीं से इगारवीं सदी के बीच जोशीमठ कत्यूरी राजाओं की राजधानी थी| जिसका नाम कार्तिकेयपुर था| उस समय कुमाऊँ और गढ़वाल उनका शासन था| हिन्दुओं के धार्मिक स्थल की प्रधानता के रूप मैं जोशीमठ आदि गुरु शंकराचार्य की सम्बधता के कारण मान्य हुवा है| जोशीमठ शब्द जोतिरमठ शब्द का अपभ्रंश है| आदि गुरु शंकराचार्य ने जोशीमठ मैं एक विद्यापीठ की स्थापना की और इसको ज्योतिर्मठ का नाम दिया| जोशीमठ बद्रीनाथ के रास्ते पर एक महत्पूर्ण धार्मिक केंद्र होने के अलावा एक व्यापार केन्द्र भी था| भोटिया लोग अपना माल बिक्री हेतु जोशीमठ लेते थे| जोशीमठ क्षेत्र की धार्मिक पृष्टभूमि मैं नरसिह मन्दिर, ज्योतिर्मठ ओर शहतूत का पुरातन वृक्ष हैं|
दूनिया मैं केवल जोशीमठ के नरसिंह मन्दिर मैं भगवान विष्णु के शान्त स्वरुप के दर्शन किये जाते है|नरसिंह मन्दिर के सम्बन्ध मैं एक रहस्य का वर्णन स्कन्द पुराण के केदार खण्ड मैं हैं, कि शालिकग्राम के कलाई दिन पर दिन पतली होती जा रही है| जब वह शरीर से अलग होकर गिर जायेगी, तब नर व नारायण पर्वतों के टकराने से बद्रीनाथ के सारे रास्ते हमेशा के लिए बन्द हो जायेंगे, और फिर भगवान विष्णु की पूजा भविष्य बद्री मैं की जाएगी| जो की तपोवन से दो किमी० दूर है| पर्यटन की दृष्टी से जोशीमठ मैं बहुत सुन्दर-सुन्दर पर्वतों की शृंखला हैं| जोशीमठ से एक सड़क विश्व प्रसिद स्थान औली को, दूसरी सड़क मलारी-नीति को तथा तीसरी सड़क बद्रीनाथ-माणा को जाती हैं|तीनों जगह को देखकर अलौकिक सुन्दरता और शान्ति प्राप्त होती है|
दूनिया मैं केवल जोशीमठ के नरसिंह मन्दिर मैं भगवान विष्णु के शान्त स्वरुप के दर्शन किये जाते है|नरसिंह मन्दिर के सम्बन्ध मैं एक रहस्य का वर्णन स्कन्द पुराण के केदार खण्ड मैं हैं, कि शालिकग्राम के कलाई दिन पर दिन पतली होती जा रही है| जब वह शरीर से अलग होकर गिर जायेगी, तब नर व नारायण पर्वतों के टकराने से बद्रीनाथ के सारे रास्ते हमेशा के लिए बन्द हो जायेंगे, और फिर भगवान विष्णु की पूजा भविष्य बद्री मैं की जाएगी| जो की तपोवन से दो किमी० दूर है| पर्यटन की दृष्टी से जोशीमठ मैं बहुत सुन्दर-सुन्दर पर्वतों की शृंखला हैं| जोशीमठ से एक सड़क विश्व प्रसिद स्थान औली को, दूसरी सड़क मलारी-नीति को तथा तीसरी सड़क बद्रीनाथ-माणा को जाती हैं|तीनों जगह को देखकर अलौकिक सुन्दरता और शान्ति प्राप्त होती है|
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